Monday, December 19, 2022

मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा - साहिर लुधियानवी

मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा,
तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा.

सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का,
मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा.

दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में,
आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा.

मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही,
ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा.

- साहिर लुधियानवी

Sunday, December 18, 2022

टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती - क़ैसर उल ज़ाफ़री

टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती
अब रो के भी आँखों की जलन कम नहीं होती

कितने भी घनेरे हों तिरी ज़ुल्फ़ के साए
इक रात में सदियों की थकन कम नहीं होती

होंटों से पिएँ चाहे निगाहों से चुराएँ 
ज़ालिम तिरी ख़ुशबू-ए-बदन कम नहीं होती

मिलना है तो मिल जाओ यहीं हश्र में क्या है
इक उम्र मिरे वा'दा-शिकन कम नहीं होती

'क़ैसर' की ग़ज़ल से भी न टूटी ये रिवायत
इस शहर में ना-क़दरी-ए-फ़न कम नहीं होती

- क़ैसर उल ज़ाफ़री

जितने अपने थे, सब पराए थे - राहत इंदौरी

जितने अपने थे, सब पराए थे
हम हवा को गले लगाए थे

जितनी क़समें थीं, सब थीं शर्मिंदा,
जितने वादे थे सर झुकाए थे

जितने आंसू थे सब थे बेगाने
जितने मेहमां थे बिन बुलाए थे

सब क़िताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं,
सारे क़िस्से सुने-सुनाए थे

एक बंजर ज़मीं के सीने में
मैंने कुछ आसमां उगाए थे

वरना औक़ात क्या थी सायों की
धूप ने हौसले बढ़ाए थे

सिर्फ़ दो घूंट प्यास कि ख़ातिर
उम्र भर धूप में नहाए थे

हाशिए पर खड़े हूए हैं हम
हमने खुद हाशिए बनाए थे

मैं अकेला उदास बैठा था
शाम ने कहकहे लगाए थे

है ग़लत उसको बेवफ़ा कहना
हम कहाँ के धुले-धुलाए थे

आज कांटो भरा मुक़द्दर है,
हम ने गुल भी बहुत खिलाए थे

- राहत इंदौरी

तेरी गली से हम जो अचानक गुजर गए - इसरार अंसारी

तेरी गली से हम जो अचानक गुजर गए,
जो ज़ख्म भर चले थे वो फिर से उभर गए.

वो क्या हमारा साथ कड़ी धूप में देंगे,
जो चांदनी में अपने ही साये से डर गए.

अश्कों ने रख लिया हैं तेरे प्यार का भरम,
दामन पे आ रहे थे मगर फिर ठहर गए.

वो जुर्म जिसमे दोनों बराबर के थे सरीक़,
इल्ज़ाम जितने थे वो हमारे ही सर गए.

- इसरार अंसारी

Tuesday, July 26, 2022

જિંદગી ના મળી મન મુજબની,ત્રાસ છે, યાતના છે, સિતમ છે. - શૂન્ય પાલનપુરી

જિંદગી ના મળી મન મુજબની,
ત્રાસ છે, યાતના છે, સિતમ છે.
તે છતાં હાય ! કહેવું પડે છે,
'દેણ ઈશ્વરની કેવી પરમ છે !'

એબ પર થઈને મુસ્તાક ફરવું,
એને શોભા ગણે તે અધમ છે;
નિત પ્રદર્શિત કરે છે કલંકો,
ચાંદ પણ કેટલો બેશરમ છે !

જો ના પામી શકાયે સમંદર,
તો મરણને જ માનું હું બહેતર !
એક ખાબોચીયે ડુબવામાં,
ગર્વ લે મરજીવો એ શરમ છે.

પ્રેમ-દર્દીનો ઉપચાર મૂકો,
સૌ ઇલાજોની એને ખબર છે,
રોગ થઈ જાય જેનો પુરાણો,
શું ભલા એ તબીબોથી કમ છે ?

પ્યારાને મારી નિર્બળ ન માનો,
હાથ લાગ્યું છે ઝરણું સુરાનું;
જામ લઈ લો, હટાવો સુરાહી,
આપને મસ્ત આંખોના સમ છે.

એક દોટે મળે છે ન મંઝિલ,
લાખ કરવા પડે છે વિસામા !
દુઃખ નથી શૂન્ય લાંબી સફરનું;
અશ્વ કમજોર છે એનો ગમ છે.

- શૂન્ય પાલનપુરી

Thursday, March 17, 2022

दिल की तह की कही नहीं जाती, नाज़ुक है असरार बहोत - मीर तक़ी मीर

दिल की तह की कही नहीं जाती, नाज़ुक है असरार बहोत

अक्षर तो है इश्क़ के दो ही, लेकिन है विस्तार बहोत


हिज़्र ने जी ही मारा हमारा, क्या कहिये क्या मुश्किल है

उस से जुदा रहना होता है, जिससे हमें है प्यार बहोत


सौ ग़ैरों में हो आशिक़ तो एक उसी से शर्मावे,

इस मस्ती में आँखे उसकी रहती है हुशियार बहोत


रात से शोहरत इस बस्तीमें 'मीर' के उठजाने की है,

जंगल में जो जल्द बसाजा शायद था बीमार बहोत


दिल की तह की = मन की छुपी हुई बात

असरार = भेद, राज़

हिज़्र = जुदाई


- मीर तक़ी मीर

Saturday, June 19, 2021

हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है

हमारी साँसों में आज तक 
वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमें मचल रहे हैं
नज़र से मस्ती झलक रही है

कभी जो थे प्यार की जमानत
वो हाथ है गैर की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतो की
उन्ही की नीयत बहक रही है

किसीसे कोई गिला नही है
नशीब में ही वफ़ा नही है
जहा कही था हिना को खिलना
हिना वही पे महक रही है

वो जिनकी खातिर ग़ज़ल कही थी
वो जिनकी खातिर लिखे थे नग़मे
उन्ही के आगे सवाल बनके
ग़ज़ल की झांझर छनक रही है

तड़प मेरे बेकरार दिल की
कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इस में
जो आग दिल में दहक रही है

वो मेरे नज़दीक आते आते
हया से इक दिन सिमट गये थे
मेरे खयालों में आज तक
वो बदन की डाली लचक रही है

सदा जो दिल से निकल रही है
वो शायर-ओ-नग़मों में ढल रही है
कि दिल के आंगन में जैसे कोई
ग़ज़ल की झांझर छनक रही है