Saturday, June 19, 2021

हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है

हमारी साँसों में आज तक 
वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमें मचल रहे हैं
नज़र से मस्ती झलक रही है

कभी जो थे प्यार की जमानत
वो हाथ है गैर की अमानत
जो कसमें खाते थे चाहतो की
उन्ही की नीयत बहक रही है

किसीसे कोई गिला नही है
नशीब में ही वफ़ा नही है
जहा कही था हिना को खिलना
हिना वही पे महक रही है

वो जिनकी खातिर ग़ज़ल कही थी
वो जिनकी खातिर लिखे थे नग़मे
उन्ही के आगे सवाल बनके
ग़ज़ल की झांझर छनक रही है

तड़प मेरे बेकरार दिल की
कभी तो उन पे असर करेगी
कभी तो वो भी जलेंगे इस में
जो आग दिल में दहक रही है

वो मेरे नज़दीक आते आते
हया से इक दिन सिमट गये थे
मेरे खयालों में आज तक
वो बदन की डाली लचक रही है

सदा जो दिल से निकल रही है
वो शायर-ओ-नग़मों में ढल रही है
कि दिल के आंगन में जैसे कोई
ग़ज़ल की झांझर छनक रही है

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