मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा,
तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा.
सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का,
मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा.
दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में,
आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा.
मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही,
ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा.
- साहिर लुधियानवी
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