Tuesday, July 23, 2013

जबसे क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम, खुद अपने आईने को लगे अजनबी से हम. - निंदा फ़ाज़ली

जबसे क़रीब हो के चले ज़िंदगी से हम,
खुद अपने आईने को लगे अजनबी से हम.

आंखो को देके रोशनी गुल कर दिये चराग,
तंग आ चुके हैं वक़्त की इस दिल्लगी से हम.

अच्छे बुरे के फ़र्क ने बस्ती उज़ाड दी,
मजबुर होके मिलने लगे हर किसी से हम.

वो कौन है जो पास भी है और दूर भी,
हर लम्हा मांगते है किसी को किसी से हम.

एहसास ये भी कम नहीं जीने के वास्ते,
हर दर्द जी रहे हैं तुम्हारी ख़ुशी से हम.

कुछ दूर चलके रास्ते सब एक से लगे,
मिलने गये किसी से मिल आये किसी से हम.

किस मौड पर हयात ने पहोचां दिया हमे,
नाराज़ है ग़मो से ना ख़ुश है ख़ुशी से हम.

 - निंदा फ़ाज़ली

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