Monday, June 10, 2013

तुम्हारी अंजुमन से उठके दीवाने कहां जाते - क़तील शिफ़ाई

तुम्हारी अंजुमन से उठके दीवाने कहां जाते,
जो वाबस्ता हुए तुमसे, वो अफ़साने कहां जाते.

निकल कर दैरो-काबा अगर मिलता ना मैखाना,
तो ठुकराये हुए इन्सान खुदा जाने कहां जाते.

तुम्हारी बेरुखी ने लाज रख ली बादाखाने की,
तुम आंखों से पीला देते तो पैमाने कहां जाते.

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी,
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहां जाते.

'क़तील' अपना मुक़द्दर ग़म से बैगाना अगर होता,
फिर तो अपने-पराये हमसे पहेचाने कहां जाते.

- क़तील शिफ़ाई

अंजुमन = सभा, मंडल,
वाबस्ता = सबंधी, सगु, अपना
दैर = मंदिर
काबा = मक्का मदिना
बादाखाना = मदिरालय, शराबखाना, मैखाना

HiteshGhazal -

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