बस की दुश्वार है हर काम का आसां होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,
दर-ओ-दीवर से टपके है बयाबां होना.
वाए दीवानगि-ए-शौक़ कि हरदम मुझको,
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना.
जल्वा अज़ बस कि तक़ज़ा-ए-निगह करता है,
जौहरे-आईना भी चाहे है मिज़्गां होना.
इशरते-क़त्ल गहे-अहले-तमन्ना मत पूछ,
ईदे-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरिया होना.
ले गए ख़ाक में हम दाग़े-तमन्ना-ए-निशात,
तू हो और आप बसद रंग गुलिस्तां होना.
इशरते-पारहा-ए-दिल ज़ख़्मे-तमन्ना खाना,
लज़्ज़ते-रीशे-जिगर, ग़र्के-नमकदां होना.
की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा,
हाए उस ज़ोदे-पशेमां का पशेमां होना.
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब',
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
मयस्सर = प्राप्त, मिलना
दिरिया = रोना
काशाने = निवास, घर
अज़ = दर्शन
जौहरे-आईना = दर्पण के गुण
शमशीर = तलवार
उरियां = नग्नावस्था,
इशरत = सुखद
ग़र्के-नमकदां = नमक का पात्र
ज़ोदे-पशेमां = निर्लज्ज
हैफ़ = खेद, शर्म
गिरेबं = वस्त्र का अग्रभाग
HiteshGhazal
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,
दर-ओ-दीवर से टपके है बयाबां होना.
वाए दीवानगि-ए-शौक़ कि हरदम मुझको,
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना.
जल्वा अज़ बस कि तक़ज़ा-ए-निगह करता है,
जौहरे-आईना भी चाहे है मिज़्गां होना.
इशरते-क़त्ल गहे-अहले-तमन्ना मत पूछ,
ईदे-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरिया होना.
ले गए ख़ाक में हम दाग़े-तमन्ना-ए-निशात,
तू हो और आप बसद रंग गुलिस्तां होना.
इशरते-पारहा-ए-दिल ज़ख़्मे-तमन्ना खाना,
लज़्ज़ते-रीशे-जिगर, ग़र्के-नमकदां होना.
की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा,
हाए उस ज़ोदे-पशेमां का पशेमां होना.
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब',
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना.
- मिर्ज़ा ग़ालिब
मयस्सर = प्राप्त, मिलना
दिरिया = रोना
काशाने = निवास, घर
अज़ = दर्शन
जौहरे-आईना = दर्पण के गुण
शमशीर = तलवार
उरियां = नग्नावस्था,
इशरत = सुखद
ग़र्के-नमकदां = नमक का पात्र
ज़ोदे-पशेमां = निर्लज्ज
हैफ़ = खेद, शर्म
गिरेबं = वस्त्र का अग्रभाग
HiteshGhazal
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