Monday, June 10, 2013

लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दिजीए, आप फिर मुस्कूरा दिजीए. - राज़ इल्लहबादी

लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दिजीए,
आप फिर मुस्कूरा दिजीए.

चांद कबतक ग्रहन मै रहे,
अब तो ज़ुल्फ़े हटा दिजीए,

मेरा दामम बहोत साफ़ है,
कोई तोहमत लगा दिजीए.

किंम्मत-ए-दिल बता दिजीए,
ख़ाक लेकर उड़ा दिजीए.

आप अंधेरे में कबतक रहे,
फिर कोई घर जला दिजीए.

इक समंदर ने आवाज़ दी,
मुझको पानी पीला दिजीए.

- राज़ इल्लहबादी

तोहमत = आरोप, कलंक, दोश देना

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