Monday, June 10, 2013

रंज़ की जब गुफ़्तगू होने लगी, आपसे तुम, तुमसे तू होने लगी. - दाग़ देहलवी

रंज़ की जब गुफ़्तगू होने लगी,
आपसे तुम, तुमसे तू होने लगी.

चाहिये पैग़ामबर दोनों तरफ़,
लुत्फ़ की जब दू-ब-दू होने लगी.

मेरी रुसवाई की नौबत आ गई,
उनकी शोहरत कू-ब-कू होने लगी.

ना उम्मीदी बढ गई है इस क़दर,
आरज़ू की आरज़ू होने लगी.

अब के मिलकर देखिये क्या रंग हो,
फिर हमारी ज़ुस्तजू होने लगी.

' दाग़' इतराये हुए फिरते है आज,
शायद उनकी आबरू होने लगी.

- दाग़ देहलवी

पैगामबर = खबर ले जाने वला
दू-ब-दू = आमने सामने, रुबरु
कू-ब-कू = गली-गली
ज़ुस्तजू = ढुंढना, शोधना, तपास, विनंती

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