Monday, June 10, 2013

हम संभलकर चले तो ठोकरों में आ गये, आप क्यों पत्थर उठाकर रास्तों में आ गये. - मज़र सिद्दीक़ी

हम संभलकर चले तो ठोकरों में आ गये,
आप क्यों पत्थर उठाकर रास्तों में आ गये.

यूं सितारे टूटते है, नाचती है रोशनी,
जैसे तेरे अहदो-पैमां तज़रिबां में आ गये.

जो किसी के कुछ नहीं लगते है, उनसे पूछ लो,
किस की आहट पर तड़्प कर खिडकीयों में आ गये ?

लोग भाई बेच देते है ज़रुरत के लिए,
क्या हुआ, कुछ दोस्त अपने ताज़िरों में आ गये.

चंदनी रातें, सुलगते पेड़ अपनी वहशतें,
कैसे-कैसे रंग अपने रतज़गों में आ गये.

सुबह की पहली किरन है हम चिरागे़-शब नहीं,
क्या हुआ 'मज़र' बिखरकर आंधियों में आ गये.

- मज़र सिद्दीक़ी

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