Monday, June 10, 2013

पुरी अमर ग़ज़ल - चुपके चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है. - हसरत मोहानी

चुपके-चुपके रात-दिन आंसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिक़ी का ज़माना याद है.

तुझसे मिलते हीं वो कुछ बेबाक़ हो जाना मेरा,
और तेरा दांतो में वो उंगली दबाना याद है.

चोरी-चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह,
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है.

खैंच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़अॅतन,
और दुपटटे से तेरा वो मुंह छुपाना याद है.

तुझको जब तन्हा कभी पाना तो अज़राहे लिहाज़,
हाले दिल बातों ही बातों में जताना याद है.

बा-हज़ारां इश्तिराबो सद-हज़ारां इश्तयाक़,
तुझसे वोह पहले-पहल दिल का लगाना याद है.

जान कर होना जुझे वो कसरे-पा-बोसी मेरा,
और तेरा झुकाके सर वो मुस्कूराना याद है.

जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था,
सच कहो कुछ तुमको भी वो ज़माना याद है.

दोपहर की धूप में मुझको बुलाने के लिए,
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है.

देखना मुझको जो बरग़स्ता सौ सौ नाज़ से,
जब मना लेना तो फ़िर खुद रुठ जाना याद है.

शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्तो-पा होना तेरा,
और मेरा वो छेड़ना वो ग़ुदग़ुदाना याद है.

बैरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दांस्ता,
वो कलाई में तेरा कंगन घूमाना याद है.

वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ केहने के लिए,
वो तेरे सूखे लबों का थर-थराना याद है.

आ गया गर वस्ल की सब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़,
वो तेरा रो-रो के भी मुझको रुलाना याद है.

- हसरत मोहानी

बैबाक़=जिस को कोइ डर नहीं,
मुद्दते=समय,
दफ़अॅतन=अचानक,
अज़राहे लिहाज़=विवेक के साथ पेहले से सावधान,
इश्तयाक़=शौक़, अनुराग,
पा=चरन, पांव,
शौक़=शौख, होश,

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