Saturday, December 12, 2015

वो आ के ख़्वाब में तस्कीने इज़्तिराब तो दे, - मिर्ज़ा ग़ालिब

वो आ के ख़्वाब में तस्कीने इज़्तिराब तो दे,
वले मुझे तपिशे-दिल मजाले-ख़्वाब तो दे.

करे है क़त्ल, लगावट में तेरा रो ना,
तेरी तरह कोई तेग़े-निगह को आब तो दे.

दिखा के जुंबिशे-लब ही तमाम कर हमको,
न दे बोसा, तो मुंह से कहीं जवाब तो दे.

पिला दे ओके से साक़ी, जो हमसे नफ़रत है,
प्याला गर नहीं देता, न दे शराब तो दे.

' असद ' ख़ुशी से मेरे हाथ-पांव फूल गए,
कहा जो उसने, ज़रा मेरे पांव दाब तो दे.

- मिर्ज़ा ग़ालिब

इज़्तिराब = बेचैनी
मजाले-ख़्वाब = स्वपन की शक्ति
तेग़े-निगह = नज़र की तलवार
जुंबिशे-लब = होंठों का कम्पन
बोसा = चुंबन

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