Sunday, December 20, 2015

ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा, बंधा शहज़ादा जवांबख़्त के सर पर सेहरा - मिर्ज़ा ग़ालिब

ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा,
बंधा शहज़ादा जवांबख़्त के सर पर सेहरा.

क्या ही इस चांद मुखड़े पे भरा लगता है,
है तेरे हुस्ने दिल अफ़रोज़ का ज़ेवर सेहरा.

सर पे चढ़ना तुझे फबता है, पर ऐ तर्फ़े-कुलाह,
मुझको डर है कि न छीन तेरा लंबर सेहरा.

नाव भर कर ही पिरोए गए होंगे मोती,
वर्ना क्यूं लाए हैं कश्ती में लगाकर सेहरा.

सात दरिया के फ़राहम किए होंगे मोती,
तब बना होगा इस अन्दाज़ का गज़ भर सेहरा.

रुख पे दूल्हा के जो गर्मी से पसीना टपका,
है रगे-अब्रे-गुहरबार, सरासर सेहरा.

ये भी इक बेअदबी थी, कि क़बा से बढ़ जाए,
रह गया आन के दामन के बराबर सेहरा.

जी में इतराएं न मोती, कि हमीं हैं इक चीज़,
चाहिए फूलों का भी एक मुक़र्रर सेहरा.

जब कि अपने में समावें न ख़ुशी के मारे,
गूंथे फूलों का भला फिर कोई क्यूं  कर सेहरा.

ऱुखे-रौशन कि दमन, गौहरे-ग़ल्तां कि चमक,
क्यूं न दिखलाए फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर सेहरा.

तार रेशम का नहीं, है ये रगे-अब्रे-बहार,
लाएगा ताबे-गिरांबारि-ए-गौहर सेहरा.

हम सुख़न फ़हम हैं, ' ग़ालिब ' के तरफ़दार नहीं,
देखें, इस सेहरे से कह दे कोई बढ़ कर सेहरा.

- मिर्ज़ा ग़ालिब

बख़्त = जवां बख़्त का नाम का राजकुमार
अफ़रोज़ = अलौकिक सौंदर्य
तर्फ़े-कुलाह = टोपी का किनारा
लंबर = श्रेणी, स्थापत्य
फ़राहम = उपलब्धता
रगे-अब्रे-गुहरबार = मोती बरसाते बादलों की रग
क़बा = लिबास
गौहरे-ग़ल्तां = लुढ़कता हुआ मोती
फ़रोग़े-मह-ओ-अख़्तर = चांद व सितारों की शोभा
ताबे-गिरांबारि-ए-गौहर = रत्नों की बहुमूल्यता

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