Sunday, November 23, 2014

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है, एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है... - शहज़ाद अहमद

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है,
एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है.

मेरी रुसवाई में तू भी है बराबर का शरीक़,
मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है.

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको,
दूर से देखकर अब हाथ हिलाता क्या है.

सफ़रे शौक में क्यूँ कांपते हैं पाँव तेरे,
आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है.

उम्र भर अपने गरीबां से उलझने वाले,
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है.

मर गए प्यास के मारे तो उठा अबरे करम,
बुझ गयी बज़्म तो अब शम्मा ज़लाता क्या है.

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता,
देखकर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है.

तुझमें कुछ बल है दुनिया को बहाकर लेजा,
चाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है.

तेरी आवाज़ का जादू न चलेगा उनपर,
जागने वालो को 'शहजाद' जगाता क्या है.

- शहज़ाद अहमद

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