Sunday, November 23, 2014

अब कहाँ दोस्त मिलें, साथ निभाने वाले, सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले... - "सदा" अम्बालवी

अब कहाँ दोस्त मिलें, साथ निभाने वाले,
सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले.

दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर,
वक़्त से पहले तो आते नहीं आने वाले.

अश्क बन के मैं निगाहों में तेरी आऊंगा,
ऐ मुझे अपनी निगाहों से गिराने वाले.

वक़्त हर ज़ख्म का मरहम तो नहीं बन सकता,
दर्द कुछ होते हैं ता उम्र रुलाने वाले.

इक नज़र देख तो मजबूरियां भी तू मेरी,
ऐ मेरी लग्ज़िशों पर आँख टिकाने वाले.

ये सियासत है कि लानत है सियासत पे "सदा",
ख़ुद है मुजरिम बने क़ानून बनाने वाले.

- "सदा" अम्बालवी

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