मैं ख़्याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है,
सरे - आईना मेरा अक्स है, पसे - आइना कोई और है।
मैं किसी की दस्ते-तलब में हूँ तो किसी की हर्फ़े - दुआ में हूँ,
मैं नसीब हूँ किसी और का, मुझे माँगता कोई और है।
अजब ऐतबार - ओ - बे - ऐतबार के दरम्यान है ज़िंदगी,
मैं क़रीब हूँ किसी और के, मुझे जानता कोई और है।
तेरी रोशनी मेरे खद्दो - खाल से मुख्तलिफ़ तो नहीं मगर,
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ, तू वही है या कोई और है।
तुझे दुश्मनों की खबर न थी, मुझे दोस्तों का पता नहीं,
तेरी दास्तां कोई और थी, मेरा वाक़्या कोई और है।
वही मुंसिफ़ों की रवायतें , वहीं फैसलों की इबारतें,
मेरा जुर्म तो कोई और था,पर मेरी सजा कोई और है।
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं, देखना उन्हें ग़ौर से,
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुईं, कि ये रास्ता कोई और है।
जो मेरी रियाज़त - ए - नीम - शब को ’सलीम’ सुबह न मिल सकी,
तो फिर इसके माअनी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।
- ’सलीम’
तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहला कोई और है,
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है।
मेरी चाहतों को न पूछिए, जो मिला तलब के सिवा मिला,
मेरी दास्ताँ ही अजीब है, मेरा मसला कोई और है।
वो रहीम है, वो करीम है, वो नहीं कि ज़ुल्म सदा करे,
है यक़ीं ज़माने को देखकर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।
मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं, इस सफ़र में है मेरी ज़िन्दगी,
मेरी इब्तदा कहीं और है मेरी इंतहा कोई और है।
मेरा नाम ‘दर्शन’ है खतन, मेरे दिल में है कोई लौ पिघन,
मैं हूँ गुम किसी की तलाश में मुझे ढूँढता कोई और है।
- ‘दर्शन’
सरे - आईना मेरा अक्स है, पसे - आइना कोई और है।
मैं किसी की दस्ते-तलब में हूँ तो किसी की हर्फ़े - दुआ में हूँ,
मैं नसीब हूँ किसी और का, मुझे माँगता कोई और है।
अजब ऐतबार - ओ - बे - ऐतबार के दरम्यान है ज़िंदगी,
मैं क़रीब हूँ किसी और के, मुझे जानता कोई और है।
तेरी रोशनी मेरे खद्दो - खाल से मुख्तलिफ़ तो नहीं मगर,
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ, तू वही है या कोई और है।
तुझे दुश्मनों की खबर न थी, मुझे दोस्तों का पता नहीं,
तेरी दास्तां कोई और थी, मेरा वाक़्या कोई और है।
वही मुंसिफ़ों की रवायतें , वहीं फैसलों की इबारतें,
मेरा जुर्म तो कोई और था,पर मेरी सजा कोई और है।
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं, देखना उन्हें ग़ौर से,
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुईं, कि ये रास्ता कोई और है।
जो मेरी रियाज़त - ए - नीम - शब को ’सलीम’ सुबह न मिल सकी,
तो फिर इसके माअनी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।
- ’सलीम’
तुझे क्या ख़बर मेरे हमसफ़र, मेरा मरहला कोई और है,
मुझे मंज़िलों से गुरेज़ है मेरा रास्ता कोई और है।
मेरी चाहतों को न पूछिए, जो मिला तलब के सिवा मिला,
मेरी दास्ताँ ही अजीब है, मेरा मसला कोई और है।
वो रहीम है, वो करीम है, वो नहीं कि ज़ुल्म सदा करे,
है यक़ीं ज़माने को देखकर कि यहाँ ख़ुदा कोई और है।
मैं चला कहाँ से ख़बर नहीं, इस सफ़र में है मेरी ज़िन्दगी,
मेरी इब्तदा कहीं और है मेरी इंतहा कोई और है।
मेरा नाम ‘दर्शन’ है खतन, मेरे दिल में है कोई लौ पिघन,
मैं हूँ गुम किसी की तलाश में मुझे ढूँढता कोई और है।
- ‘दर्शन’
ये ग़ज़ल वास्तविक रूप से जिस की है उसका नाम दीजिये...
ReplyDeleteजो नाम आप ने दिए हैं उनका इस से कोई वास्ता नहीं..
ये पाकिस्तान शायर सलीम कौसर साहब की है, जिसे मेहदी हसन साहब, जगजीत सिंह, नुसरत साहब के अलावा आदि नामवर गायकों ने गाया है।
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