Sunday, November 24, 2013

देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो, आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराये तो... - वजाहत हुसैन उर्फ़ ‘अन्दलीब शादानी’

देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो,
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराये तो.

यूँ ही बे-समझे बूझे तुमने गेंसू लहराये तो,
कोई इस तूफ़ान-ए-बला में दीवाना हो जाए तो,

अब्र,शफ़क़,महताब,सितारे,बिजली,नगमे,शबनम,फूल,
उस दामन में क्या कुछ है,हाथ वो दामन आये तो.

चाहत के बदले में हम तो बेच दे अपनी मर्ज़ी तक,
कोई मिले तो दिल का ग्राहक कोई हमें अपनाये तो.

औरो की रूदाद नहीं है अपने ऊपर बीती है,
फूल निकलते है शोलों से चाहत आग लगाये तो.

अपने वां रफ्ता से कहा की प्यार से उसकी आँख में देखो,
संभलो,होश में आओ,कोई अगर पा जाये तो.

अपनी बर्बादी का तन्हा एक हमी को रंज नहीं,
अपने किये पर आखिर आखिर वो भी कुछ पछताये तो.

नादानी और मजबूरी में कुछ तो यारों फर्क करो,
एक बेबस इन्सान करे क्या,टूट के दिल अ जाये तो.

रूसवाई के घर से कोई राज़-ए-मोहब्बत छुपता है,
आहें रोकी, आँसू रोके, रंज मगर उड़ जाये तो.

झूठ है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है,
अच्छा मेरा ख्व़ाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराये तो.

- वजाहत हुसैन उर्फ़ ‘अन्दलीब शादानी’

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