रस्ते भर रो रो के हमसे पूछा पाँव के छालोँ ने,
बस्ती कितनी दुर बसा ली दिल मेँ बसने वालोँ ने.
कौन हमारा दर्द पढ़ेगा इन जख़्मी दीवारोँ पर,
अपना अपना नाम लिखा है सारे आने वालोँ ने.
दिल का गमोँ से रिश्ता क्या है, इश्क़ का हासिल आँसू क्यूँ,
हमको कितना ज़हर पिलाया इन बेदर्द सवालोँ ने.
अपनी ग़जलो से गीतो से तुने युं (जग जीत) लिया,
पेश किये हें तुमको दिलो के नज़राने, दिलवालों ने.
बर्बादी का मेला देखूँ ' क़ैसर ' अपनी आँखोँ से,
मेरे घर को छोड़ दिया है बस्ती फूँकने वालोँ ने.
- "क़ैसर" उल ज़ाफरी
I have beautiful Gazal of my own ...Any one who can sing ?
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