Wednesday, September 25, 2013

मैं रोया परदेश में,भीगा माँ का प्यार, दुःख ने दुःख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार. - निदा फ़ाज़ली

मैं रोया परदेश में,भीगा माँ का प्यार,
दुःख ने दुःख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार.

छोटा कर के देखिये , जीवन का बिस्तार,
आखों भर आकाश है, बाँहों भर संसार.

सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत,
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत.

पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम,
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम.

सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग,
एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग.

बच्चा बोला देखके मस्जिद आलिशान,
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान.

सातो दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर,
जिस दिन सोये देर तक ,भूखा रहे फकीर.

चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान,
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान.

मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां,
किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान.

- निदा फ़ाज़ली

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