Monday, June 10, 2013

जो भी दुख याद न था याद आया, आज क्य जानीये क्या याद आया, - ऐहमद फ़राज़


जो भी दुख याद न था याद आया,
आज क्य जानीये क्या याद आया,

याद आया था बिछड़्ना तेरा,
फ़िर नहीं याद के क्या याद आया.

हाथ उठाये थे के दिल बैंठ गया,
जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया.

फ़िर कोई हाथ है दिल पर जैसे,
फ़िर तेरा अह्दे-वफ़ा याद आया,

जिस तरहा धुंध मैं लिपटे हुऐ फ़ुल,
इक इक नक़्श तेरा याद आया.

ऐसी मजबूरी के आलम मैं कोई,
याद आया भी तो क्या याद आया,

ये रफ़िक़ो सर-ए-मंज़िल जा कर,
क्या कोइ आबला-पा याद आया.

जब कोइ ज़ख्म भरा दाग़ बना,
जब कोइ भूल गया तब याद आया.

ये महोब्बत भी हैं क्या रोग 'फ़राज़',
जिस को भूले वोह सदा याद आया.

- ऐहमद फ़राज़

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