Sunday, December 29, 2013

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है, डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है. - अकबर इलाहाबादी

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है,
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है.

ना-तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें हैं,
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है.

उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना,
मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है.

वाँ दिल में कि सदमे दो या जी में के सब सह लो,
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है.

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से,
हर साँस ये कहती हम हैं तो ख़ुदा भी है.

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं,
बुत हम को कहे काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है.

- अकबर इलाहाबादी

वाइज़ = धर्मोपदेशक
मक़सूद = मनोरथ
अनवार-ए-इलाही = दैवी प्रकाश
फ़ितरत = प्रकृति

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