Monday, June 10, 2013

यु तो जाते हुए मेने उस्से रोका भी नहीं, प्यार उस्से न रहा हो मुझे एसा भी नहीं. - फ़रहात शहज़ाद


यु तो जाते हुए मेने उस्से रोका भी नहीं,
प्यार उस्से न रहा हो मुझे एसा भी नहीं.

मुझको मंज़िल की कोई फ़िक्र नहीं है या रब,
पर भटकता ही रहुं जिस्पे वो रस्ता भी नहीं.

मुंतज़िर में भी किसी शाम नहीं था उसका,
और वादें पे कभी शख्स वो आया भी नहीं.

जिस्की आहट पे निकल पडता था कल सिने से,
देख कर आज उसे दिल मेरा धड़्का भी नहीं.

मांगलेता में महोब्बत भी भीखारी बन कर,
दर्द सिने में बहोत था मगर इतना भी नहीं.

उसको पा कर भी अगर चै रहा तन्हां मैं मगर,
और कुछ मेने खुदा से कभी मांगा भी नही.

और अब उसको भी ' सहेज़ाद ' शिकायत हैं यही,
इश्क़ तो दूर हैं मेने उसे चाहा भी नहीं.

- फ़रहात शहज़ाद

चै = क्या, शुं, ?

HiteshGhazal

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