है इसी में प्यार की आबरू वो ज़फ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
जो वफ़ा भी काम न आ सके तो वो ही कहें कि मैं क्या करूँ
मुझे ग़म भी उनका अज़ीज़ है के उन्हीं की दी हुई चीज़ है
यही ग़म है अब मेरी ज़िंदगी इसे कैसे दिल से जुदा करूँ
जो न बन सके मैं वो बात हूँ जो न ख़त्म हो मैं वो रात हूँ
ये लिखा है मेरे नसीब में यूँ ही शम्मा बन के जला करूँ
न किसी के दिल की हूँ आरज़ू न किसी नज़र की हूँ जुस्तजू
मैं वो फूल हूँ जो उदास हो न बहार आए तो क्या करूँ
- राजा मेहदी अली खान
जो वफ़ा भी काम न आ सके तो वो ही कहें कि मैं क्या करूँ
मुझे ग़म भी उनका अज़ीज़ है के उन्हीं की दी हुई चीज़ है
यही ग़म है अब मेरी ज़िंदगी इसे कैसे दिल से जुदा करूँ
जो न बन सके मैं वो बात हूँ जो न ख़त्म हो मैं वो रात हूँ
ये लिखा है मेरे नसीब में यूँ ही शम्मा बन के जला करूँ
न किसी के दिल की हूँ आरज़ू न किसी नज़र की हूँ जुस्तजू
मैं वो फूल हूँ जो उदास हो न बहार आए तो क्या करूँ
- राजा मेहदी अली खान
No comments:
Post a Comment