Monday, July 15, 2013

सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं, लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं. - क़तील शिफाई

सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं,
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं.

बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद,
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं.

मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़,
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं.

किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ,
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं.

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम,
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं.

ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब,
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं.

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है " क़तील ",
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं..

- क़तील शिफाई

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