Monday, January 20, 2014

दिल को मिटा के दाग़े-तमन्ना दिया मुझे, ऐ इश्क़ तेरी ख़ैर हो ये क्या दिया मुझे... - जिगर मुरादाबादी

दिल को मिटा के दाग़े-तमन्ना दिया मुझे,
ऐ इश्क़ तेरी ख़ैर हो ये क्या दिया मुझे...

महशर में बात भी न ज़बाँ से निकल सकी,
क्या झुक के उस निगाह ने समझा दिया मुझे...

मैं और आरज़ू-ए-विसाले-परी-रुख़ाँ,
इस इश्क़े-सादा-लौह ने भटका दिया मुझे...

हर बार यास हिज्र में दिल की हुई शरीक,
हर मर्तबा उम्मीद ने धोका दिया मुझे...

दावा किया था ज़ब्ते-मोहब्बत का ऐ ‘जिगर’,
ज़ालिम ने बात-बात पे तड़पा दिया मुझे...

- जिगर मुरादाबादी

दाग़े-तमन्ना = कामना का दाग़
महशर = प्रलय
आरज़ू-ए-विसाले-परी-रुख़ाँ = परियों जैसे मुखड़े वालियों से मिलन की कामना
इश्क़े-सादा-लौह = सरल स्वभाव वाले इश्क़ ने
यास = निराशा
हिज्र = विरह
शरीक = शामिल
ज़ब्त = सहनशीलता

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