Monday, November 4, 2013

चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले, कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले. - 'अमजद'

चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले.

फ़स्ले गुल आई फिर इक बार असीराने वफ़ा,
अपने ही ख़ून के दरिया में नहाने निकले.

हिज्र की चोट अजब संगशिकन होती है,
दिल की बेफ़ैज़ ज़मीनों से ख़ज़ाने निकले.

उम्र गुज़री है शबे तार में आँखें मलते,
किस उफ़क़ से मेरा ख़ुर्शीद न जाने निकले.

कू-ए-क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस,
ख़्वाब यूं भीगती आँखों को सजाने निकले.

दिल ने इक ईंट से तामीर किया ताजमहल,
तूने इक बात कही लाख फ़साने निकले.

दश्ते तन्हाई-ए-हिज्रां में खड़ा सोचता हूं,
हाए क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले.

मैने 'अमजद' उसे बेवास्ता देखा ही नहीं,
वो तो ख़ुशबू में भी आहट के बहाने निकले.

- 'अमजद'

असीराने वफ़ा = Prisoners of love
हिज्र = Separation  संग = Stone   शिकन = Crack/wrinkle   बेफ़ैज़ = Barren
शबे तार = Dark night   उफ़क़ = Horizon   ख़ुर्शीद = Sun
कू-ए-क़ातिल = Killer's (lover's) lane
तामीर = Plan
दश्त = Desert   तन्हाई = Solitude  हिज्रां = Separation
बेवास्ता = Without reason

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